भावनात्मक संवाद : अर्थपूर्ण जीवन की कुंजी

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आज इस पटल से आप सब के साथ पहली बार रूबरू हूं। “चुभन” को आप सबने इतना स्नेह आशीर्वाद दिया कि उसके लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं कि आपका आभार व्यक्त कर सकूँ।

एक और पटल की आवश्यकता क्यों ? –

एक और पटल “भावनात्मक संवाद” क्यों ? इसका उत्तर मेरे पास भी नहीं है लेकिन इतना ज़रूर कहना चाहूंगी कि कुछ ऐसा था जो लगता था कि कहने से रह जाता है। “चुभन” पर हमने हमेशा ज्वलंत, प्रासंगिक और चुभते हुए विषय उठाए और उनपर मंथन किया। देश ही नही विदेशों से भी लगभग हर क्षेत्र और हर विधा के लोग जुड़े और कई सार्थक संवाद हुए।

चुभन नाम की सार्थकता –

आपलोगों से बताना चाहूंगी कि “चुभन” नाम मेरी माँ द्वारा ही रखा गया था, क्योंकि बचपन से मेरी आदत थी कि कोई भी बात मेरे दिल को बहुत चुभ जाती थी और मैं उसके बारे में बहुत सोचती थी, इसलिए जब मैंने अपने ब्लॉग और पॉडकास्ट के बारे में बात की तो मेरी माँ ने तुरंत कहा कि “तुम इसका नाम “चुभन” ही रखो।” मैंने बिना एक पल भी सोचे चैनल का नाम “चुभन” रख दिया और इस नाम ने, स्वयं के काम से इतना खुद को साबित किया कि सबने इसे पसंद किया, सराहा और आज मुझे कोई मेरे नाम से जाने या न जाने लेकिन “चुभन” का नाम देश विदेश में बहुत लोकप्रिय है। अधिकतर जितने विद्वद्जन चुभन के पटल पर आए, सबने इसके नाम की सार्थकता को स्वीकार किया और यह मेरे लिए मेरी माँ का प्रसाद ही है।

माँ –

मेरी माँ, जो इस दुनिया में मेरी सबसे अच्छी गुरु, दोस्त, सलाहकार, मेरी ज़िंदगी की सबसे पड़ी प्रेरणा…..सब कुछ थी, उन्होंने जितना मुझे जाना समझा था, उतना तो आज तक मैं स्वयं को भी नही जान पाई। उनकी मुस्कुराहट, उनकी बातें, उनकी देखभाल, हर चीज़ मेरे लिए अनमोल है। माँ की यादें मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और मैं उनकी यादों को हमेशा अपने दिल मे रखूंगी। वे जानती थीं कि मैं बहुत भावुक, बहुत संवेदनशील हूं, इसलिए हमेशा कहती थीं कि तुम अपनी भावुकता, अपनी संवेदनशीलता….. सब कुछ अपनी लेखनी में उतार दो। सच में माँ का हृदय जितना अपने बच्चे को जान पाता है, उतना कोई और नही।

स्वर्णज्योति जी को श्रद्धांजलि –

आज मैं मातृस्वरूपा डॉ. स्वर्णज्योति जी को भी बहुत याद कर रही हूं। जैसा मैंने कहा कि माँ से ज़्यादा मुझे किसी ने नही समझा जाना और मैं स्वयं को बहुत सौभाग्यशाली समझती हूं कि मुझे माँ के जैसी स्वर्णज्योति जी भी मिलीं। जिनसे मैंने इतना प्यार-दुलार पाया कि लिखने के लिए शब्द भी कम पड़ रहे हैं और मन इतना भावुक हो रहा है कि आंखें नम हैं। स्वर्णज्योति जी भी मुझे यही कहती थीं कि तुम इतनी भावुक हो, संवेदनशील हो तो बस उसे अपने लेखन में उतारो। आज अपनी माँ और मातृस्वरूपा स्वर्णज्योति जी की स्मृतियों को नमन करती हूं।

मेरे अनुभव –

अपने इस पटल “भावनात्मक संवाद” के द्वारा उन दोनों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं, जिन्होंने मुझे जीने का सही तरीका सिखाया और अब यहां इस पटल से मैं अपनी भावनाओं, अपने अनुभवों और अपने विचारों को साझा करूंगी।

माँ कहीं भी जाती नहीं है, वो हमारी स्मृतियों में बस जाती है या शायद हम माँ की स्मृतियों में समा जाते हैं और वो देह त्याग कर भी सदा हमारे पास होती है, साथ होती है।

डॉ. स्वर्णज्योति जी, जिनसे आप सभी “चुभन” में कई बार मिल चुके हैं, उनके स्वर्गवास को लगभग 3 माह बीत चुके हैं, पता नही क्यों पर आज तक मैं एक शब्द भी उनके बारे में लिखकर कहीं भी डाल नहीं सकी। कई बार अपने चैनल पर उनके बारे में कार्यक्रम बनाने का विचार आया, परंतु मेरी आँखें, मेरे हाथ, मेरा दिमाग, मेरा दिल…..बिल्कुल भी मेरा साथ नही दे रहा था कि उनके बारे में कुछ भी लिखूं, कुछ भी बोलूं, क्योंकि मैं स्वीकार ही नही कर पा रही थी कि वे गोलोकवासी हो गयी हैं, जैसे आज 2 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी मैंने कभी यह नही माना कि मेरी माँ अब इस दुनिया मे नही है…..

परंतु आज इस चैनल “भावनात्मक संवाद” को प्रथम बार आप सबके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मैं, मेरी माँ और स्वर्णज्योति जी, दोनों को अपने शब्दों के सुमन अर्पित कर रही हूं और यह मान रही हूं कि इस पटल को उनका आशीर्वाद मिलेगा।

यहां हम भावनाओं की बात करेंगे क्योंकि भावनाएं हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। ये हमारे अनुभवों को समृद्ध बनाती हैं, हमारे रिश्तों को गहरा करती हैं, और हमारे व्यक्तित्व को आकार देती हैं। भावनात्मक संवाद इसी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और दूसरों की भावनाओं को समझने में मदद करता है।

“भावनात्मक संवाद” क्या है ?

यह एक ऐसा पटल है, जिसमें हम अपनी भावनाओं को दूसरों के साथ साझा करेंगे और उनकी भावनाओं को समझने का प्रयास करेंगे। यह संवाद हमारे रिश्तों को मजबूत बनाने में मदद करेगा क्योंकि यह हमें एक दूसरे के साथ जुड़ने और समझने में मदद करेगा। हमारा प्रयास यह होगा कि यह हमें तनाव और चिंता से मुक्ति दिलाए और अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बनाने में मदद करे।

कितना सुखद संयोग है कि आज बसन्त पंचमी का पावन पर्व भी है। मान्यता है कि बसन्त पंचमी को वाणी की देवी माँ सरस्वती का जन्म हुआ था। आज के दिन माँ सरस्वती की पूजा करने से जीवन में विवेक की प्राप्ति होती है। आज के दिन किसी भी प्रकार के शुभ कार्यों का आरंभ किया जा सकता है। ऐसा भी कहा जाता है कि आज के दिन से रचनात्मकता से जुड़ा कोई भी कार्य यदि शुरू किया जाए तो वह पूर्णता को प्राप्त होता है, तो आइए, इस पावन दिवस से ही हम और आप अपनी भावनाओं को साझा करने की शुरुआत करें।

3 thoughts on “भावनात्मक संवाद : अर्थपूर्ण जीवन की कुंजी

  1. हार्दिक अभिनंदन “भावनात्मक संवाद” की शुरुवात के लिए 🪷💐👏
    ईश्वर करे यह पटल हम सबकी भावनाओं का मंथन केंद्र बने दूरियां मिटाए और नज़दीकियाँ लाए 💞🔱💞
    पुनः बधाइयाँ और शुभकामनाएँ 🪷💐👏

    1. भावनाजी आपकी भावनाओं को वंदन। आपने तो अपनी सारी भावना आज इस लेख में उडेल दी है मां तो मां होती है,जो हमें हमसे ज्यादा जानती है और उनकी विदाई के बाद भी वह हमारे मन में जीवित रहती है। आप तो हरदम नए-नए वक्ता और विषय लाकर अद्भुत संचालन करके, शब्द और साहित्य की गंगा बहाकर सबको पावन करते रहती है। आपके विविध विषयों की जानकारी और ज्ञान को सलाम।

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